मुरादाबाद। जिले में स्थित प्राचीन श्री हुल्का देवी माता मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है। मंदिर के महंत बीएन गोस्वामी ने बताया कि यह 500 से अधिक वर्ष पुराना प्राचीन सिद्धपीठ मंदिर है। यहां पर होली के अगले दिन से 14 दिवसीय बसौड़ा मेला लगता है। इस मेले में लाखों श्रद्धालु मंदिर आते हैं और पूजा अर्चना कर प्रसाद चढ़ाते हैं।
श्री हुल्का देवी माता मंदिर को शीतला माता मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर के महंत पंडित ब्रह्मानंद गोस्वामी ने हिन्दुस्थान समाचार से विशेष बातचीत में मंदिर के इतिहास की जानकारी दी। उन्हाेंने बताया कि यहां लगभग 500 वर्ष पूर्व शीतला माता स्वयं अवतरित हुई थी। उसके बाद यहां मठ (चामुंडा मंदिर) बना, जिसमें माता की स्वयंभू मूर्ति को स्थापित किया गया। यहां पर पहले महंत गिरी बाबा का स्थान हुआ करता था। बाद में उनके शिष्य भागीरथ दास और हरद्वार गोस्वामी ने मठ में मंदिर का निर्माण किया।
महंत बीएन गोस्वामी ने बताया कि मंदिर परिसर में सेवा की एक छावनी बनी हुई थी, जहां अधिकतर जवान आए दिन बीमार रहते थे। एक दिन छावनी के कैप्टन को शीतला माता ने स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि अगर तुम्हारे सैनिक मेरे मंदिर में दर्शन करने के साथ ही प्रसाद चढ़ाकर पूजा अर्चना करेंगे तो वह ठीक हो जाएंगे और उनकी बीमारी दूर हो जाएगी। इसके बाद छावनी कप्तान ने अपने सैनिकों के साथ माता रानी के दर्शन कर प्रसाद चढ़ाया और पूजा अर्चना की। जिसके बाद से सभी स्वस्थ रहने लगे। यह बात धीरे-धीरे लोगों को पता चली और मंदिर में लोगों के आने की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती चली गई।
उन्हाेंने बताया कि दुल्हैंडी (रंग वाली होली) के अगले दिन चैत्र मास कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि से मंदिर में 14 दिवसीय बसौड़ा मेला प्रारंभ हो जाता हैं, जो चैत्र नवरात्र के प्रारंभ होने तक चलता है। मेले के दौरान शीतला माता के पूजन के लिए हर वर्ष जिले के अलावा पड़ोसी जनपदों, उत्तराखंड व दिल्ली आदि से भी से भी श्रद्दालु आते हैं।
मंदिर परिसर में शीतला माता के अलावा काली माता, भगवान विष्णु, हनुमान जी, भगवान कृष्ण और शिव परिवार स्थापित हैं। मंदिर में आने वाले श्रद्धालु माता रानी को प्रसाद में बताशे, लौंग का जोड़ा, कौड़ी, फल फूल के साथ जल इत्यादि चढ़ाकर पूजा अर्चना करते हैं। मंदिर के पुरोहितों के द्वारा मोरपंखी से उनके ऊपर झाड़ा लगाया जाता है। बसौड़ा मेले में आने वाले भक्त एक दिन पूर्व घर पर बनाए गए बासी भोजन को लेकर आते हैं और माता रानी को भोग लगाते हैं। फिर परिवार संग मंदिर परिसर में बैठकर उसे ग्रहण करते हैं।
बीएन गोस्वामी ने बताया कि विवाह के बाद मायके में पहली होली पर आईं नव विवाहिता शीतला माता को प्रसाद चढ़कर अपनी ससुराल के लिए प्रस्थान करती हैं। बसौड़ा मेले में काफी श्रद्धालु बच्चों को मुंडन के लिए भी आते हैं। इसके अलावा नव विवाहित जोड़े माता से सुखद दांपत्य जीवन के लिए प्रसाद चढ़ाकर आशीर्वाद लेते हैं।
उन्हाेंने बताया कि हुल्का देवी मंदिर का निर्माण महंत गिरी बाबा के शिष्य महंत भागीरथ दास व महंत भागीरथ दास के शिष्य महंत हरद्वार गोस्वामी ने कराया था। वर्तमान में मंदिर परिसर में महंत हरद्वार गोस्वामी व उनके पुत्र महंत सच्चिदानंद गोस्वामी की समाधि बनी हुई हैं।
वायुमंडल के बढ़े तापमान को कम करने के लिए चढ़ाते हैं जल
पंडित बीएन गोस्वामी ने बताया कि मान्यता है कि होलिका दहन के बाद वायुमंडल का तापमान बढ़ता है। उसे कम करने के लिए माता शीतला पर जल चढ़ाया जाता है। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि चौराहों पर होली जलने वाले स्थान पर लोग जल चढ़ाकर और शीतला माता मंदिर में जल चढ़कर होलिका माता/शीतला माता को शांत (ठंडा) करते हैं।