पूर्णिया। पूर्णिया के बेलौरी में शीतला अष्टमी के अवसर पर मां शीतला का दरबार इस बार बेहद भव्य और आकर्षक रूप से सजाया गया है और सुबह से ही भक्तों की विशाल भीड़ ने मंदिर परिसर को पूरी तरह से घेर लिया। इस बार का शीतला अष्टमी आयोजन न केवल कोसी सीमांचल, बल्कि बिहार, झारखंड, नेपाल, भूटान और बांग्लादेश जैसे देशों से भी श्रद्धालुओं को आकर्षित कर रहा है। महिलाएं, लड़कियां और पुरुष एक साथ लंबी कतारों में खड़े होकर मां शीतला के दर्शन और पूजा अर्चना कर रहे हैं। शीतला अष्टमी के इस धार्मिक पर्व के दौरान मंदिर परिसर में उल्लास और श्रद्धा का अनोखा माहौल बना हुआ है।
मंदिर परिसर में खासतौर पर शीतला माता की पूजा अर्चना के बाद भक्तों के बीच कबूतर छोड़ने और पशु दान की परंपरा निभाई जाती है, जो इस दिन का एक प्रमुख धार्मिक अनुष्ठान है। मंदिर परिसर के आसपास मेला ग्राउंड में हर साल की तरह एक विशाल मेला भी लगता है, जहां भक्तों के अलावा स्थानीय लोग भी जुटते हैं और मेलें का आनंद लेते हैं। मेले में खाने-पीने से लेकर सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन भी किया जाता है। इस दौरान भारी भीड़ को ध्यान में रखते हुए सुरक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए पुलिस बल की तैनाती की गई है, साथ ही मंदिर कमिटी द्वारा वोलेंटियर की मदद से भीड़ को नियंत्रित किया जा रहा है।
मंदिर के पुजारी प्रह्लाद दास और वार्ड सदस्य मनोज कुमार साह ने बताया कि शीतला अष्टमी पर पूजा अर्चना के साथ मंदिर के पट श्रद्धालुओं के लिए खोले गए हैं। इस दिन का विशेष महत्व है और भक्तों की मान्यता है कि शीतला अष्टमी पर मां शीतला की पूजा से हर मनोकामना पूरी होती है। पूजा के बाद भक्तों को खिचड़ी महाप्रसाद का वितरण भी किया जाता है, जो इस दिन की एक अहम परंपरा बन चुका है।
मेला कमेटी के अध्यक्ष प्रमोद देवनाथ और सदस्य राजा सिंह ने भी इस दिन के ऐतिहासिक महत्व को बताया। उन्होंने कहा कि 1945 में इस इलाके में चेचक महामारी का रूप ले चुकी थी और बस्ती के बस्ती इसके चपेट में आ रही थी। उस समय पश्चिम बंगाल से आए रोहिणी कविराज ने जड़ी-बूटी के लेप से महामारी से निपटने के लिए अपनी सेवा दी थी, जिससे मरणासन्न हो रहे लोगों को भी जीवन मिला था। उनकी इस कार्यशक्ति और प्रसिद्धि ने शीतला माता के प्रति श्रद्धा का पहाड़ खड़ा कर दिया, और तब से शीतला माता का मंदिर आस्था और विश्वास का केंद्र बन गया है।
आज भी यहां देश-विदेश के श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आते हैं और यहां मां शीतला के दरबार में अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं।